Wednesday, October 17, 2007

क्या करें

मेरी, तेरी, निगाह में
जो लाख इन्तेज़ार हैं

जो मेरे, तेरे तन बदन में
लाख दिल फ़िगार हैं

जो मेरी, तेरी उंगलियों की बेहिसी से
सब कलम निज़ार हैं

जो मेरे, तेरे शहर की
हर इक गली में
मेरे, तेरे नक्श-ए-पा के बेनिशां मज़ार हैं

जो मेरी, तेरी रात के
सितारे ज़ख्म ज़ख्म हैं

जो मेरी, तेरी सुबह के
गुलाब चाक चाक हैं

ये ज़ख्म सारे बे-दवा
ये चाक सारे बे-रफ़ू
किसी पे राख चांद की
किसी पे ओस का लहू
ये हैं भी या नहीं बता
ये हैं की महज़ जाल हैं
मेरे तुम्हारे अन्कबूत-ए-वहम क बुना हुआ
जो है, तो इस का क्या करें
नही है, तो भी क्या करें
बता, बता
बता, बता

फैज़, १९८०
मेरे दिल, मेरे मुसाफिर

1 Comments:

Blogger Veena said...

Rab se aap ki khushi maangte hain,
duaon mein aapki hasi maangte hain,
sochte hai aapse kya maange,
chalo aap se umar bhar ki mohabbat maangte hain...

Hindi Shayari

10:26 PM  

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