Saturday, April 08, 2006

आखिरी ख़त-फैज़

वो वक़्त मेरी जान बहुत दूर नहीं है

जब दर्द से रुक जायेंगी सब ज़ीस्त की राहें

और हद से गुज़र जायेगा अन्दोहे-निहानी

थक जायेंगी तरसी हुई नाकाम निगाहें

छिन जायेंगे मुझसे मेरे आंसू मेरी आहें

छिन जायेगी मुझसे मेरी बेकार जवानी

शायद मेरी उल्फ़त को बहुत याद करोगी

अपने दिले-मासूम को नाशाद करोगी

आओगी मेरी गोर पे तुम अश्क बहाने

नौखे़ज़ बहारों के हसीं फूल चढ़ाने

शायद मेरी तुरबत को भी ठुकरा के चलोगी

शायद मेरी बेसूद वफ़ाओं पे हंसोगी

इस वज़'ए-करम का तुम्हें पास न होगा

लेकिन दिले-नाकाम को एहसास न होगा

अलक़िस्सा माआले-ग़मे-उल्फ़त पे हंसो तुम

या अश्क बहाती रहो, फ़रियाद करो तुम

माज़ी पे नदामत हो तु्म्हें या कि मसर्रत

खा़मोश पड़ा सोएगा बामांदा-ए-उल्फ़त

फैज़


जीस्त-जीवन

अन्दोहे-निहानी-भीतरी दुख

नाशाद--कब्र

अश्क-आंसू

नौख़ेज़-नई

तुरबत-कब्र

वज़'ए-करम-करम का ढंग

अलकि़स्सा- संक्षेप

माआले-गमे-उल्फत-प्रेम के दुख के परिणाम से

माज़ी पे- अतीत पर

बामांदा-ए-उलफत- प्रेम के हाथों से श्रान्त

1 Comments:

Blogger Veena said...

huda Ne Jab Tujhe Banaya Hoga,
Ek Suroor Sa Uske Dil Mai Aaya Hoga,
Socha Hoga Kya Dunga Tohfe Mai Tujhe,
Tab Jake Usne Mujhe Banaya Hoga

Aap Hume Bhool Jao Hume Koi Gum Nahi,
Aap Hume Bhool Jao Hume Koi Gum Nahi,
Jis Din Humne Aapko Bhuladiya,
Samajh Lijiyega, is duniya me hum nahi

Na Jagte Huve Khwab Dekha Karo,
Na Chaho Use Jise Pa Na Sako,
Pyaar Kaha Kisika Pura Hota Hai,
Pyaar Ka Pehla Akshar Adhura Hota Hai

Source:Hindi Shayari

10:33 PM  

Post a Comment

<< Home