Sunday, September 09, 2007

तन्हाई

तन्हाई
फिर कोई आया, दिल-ए-ज़ार, नहीं कोई नहीं,
राहरू होगा, कहीं और चला जायेगा
ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का गुबार,
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख्वाबीदा चिराग़.

सो गई रास्ता तक तक हर इक राहगुज़ार
अजनबी ख़ाक ने धुंधला दिये कदमों के सुराग़.
गुल करो शमाएं, बढ़ा दो मै-ओ-मीना-ओ-अयाग.
अपने बेख्वाब किवाड़ों को मुकफ़्फ़ल कर लो,
अब यहां कोई नहीं, कोई नहीं आयेगा.

नक्श-ए-फ़रियादी
फैज़
१९४१





Tanhai (Solitude)
Who goes there, O heart bereaved? No one, no one,
A wayfarer perhaps, who will go elsewhere.
Night has waned, the dust of stars is scattering;
In great halls the sleepy lamps are fluttering,
Tired of the vigil, all roads have gone to sleep,
Alien dust has dimmed the bright trace of feet.
Put out the lights! take away the wine, goblet and flash!
Lock up your sleepless doors, O solitary heart.
No one will come here now, no one, no one.

Naqsh-e-Faryadi
Faiz
1941

Saturday, September 08, 2007

याद

याद

दश्त-ए-तन्हाई में, ऐ जान-ए-जहान, लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साये, तेरे होठों के सराब,
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स-ओ-ख़ाक तले
खिल रहे हैं तेरे पेहलू के समन-ओ-गुलाब.

उठ रही है कहीं करीब से तेरी सांस की आंच
अपनी खुश्बू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम
दूर, उफ़ाक पार, चमकाती हुई कतरा कतरा
गिर रही है तेरी दिलदार नज़र की शबनम

इस कदर प्यार से, ऐ जान-ए-जहान, रक्खा है
दिल के रुख्सार पे इस वक्त तेरी याद ने हाथ
यों गुमान होता है, गर्चे है अभी सुभ-ए-फ़िराक
ढल गया हिज्र का दिन, आ भी गयी वस्ल की रात.

फैज़
१९५३