Saturday, May 06, 2006

सोच-फैज़

क्यूं मेरा दिल शाद नहीं है क्यूं खामोश रहा करता हूं
छो़डो मेरी राम कहानी मैं जैसा भी हूं अच्छा हूं

मेरा दिल गमग़ीं है तो क्या गमगीं ये दुनिया है सारी
ये दुख तेरा है न मेरा हम सब की जागीर है प्यारी

तू गर मेरी भी हो जाये दुनिया के गम यूं ही रहेंगे
पाप के फ़न्दे, ज़ुल्म के बन्धन अपने कहे से कट न सकेंगे

गम हर हालत में मोहलिक है अपना हो या और किसी का
रोना धोना, जी को जलाना यूं भी हमारा, यूं भी हमारा

क्यूं न जहां का गम अपना लें बाद में सब तदबीरें सोचें
बाद में सुख के सपने देखें सपनों की ताबीरें सोचें

बे-फ़िक्रे धन दौलत वाले ये आखिर क्यूं खुश रहते हैं
इनका सुख आपस में बाटें ये भी आखिर हम जैसे हैं

हम ने माना जंग कड़ी है सर फूटेंगे,खून बहेगा
खून में गम भी बह जायेंगे हम न रहें, गम भी न रहेगा

दुआ-फैज़

आईए हाथ उठायें हम भी
हम जिन्हें रस्म-ए-दुआ याद नहीं
हम जिन्हें सोज़-ए-मोहब्बत के सिवा
कोई बुत, कोई खुदा याद नहीं

आईए अर्ज़ गुज़रें कि निगार-ए-हस्ती
ज़हर-ए-इमरोज़ में शीरीनी-ए-फ़र्दां भर दे
वो जिन्हें तबे गरांबारी-ए-अय्याम नहीं
उनकी पलकों पे शब-ओ-रोज़ को हल्का कर दे

जिनकी आंखों को रुख-ए-सुबह का यारा भी नहीं
उनकी रातों में कोई शमा मुनव्वर कर दे
जिनके कदमों को किसी राह का सहारा भी नहीं
उनकी नज़रों पे कोई राह उजागर कर दे

जिनका दीन पैरवे-ए-कज़्बो-रिया है उनको
हिम्मत-ए-कुफ़्र मिले, जुर्रत-ए-तहकीक मिले
जिनके सर मुन्ताज़िर-ए-तेग-ए-जफ़ा हैं उनको
दस्त-ए-कातिल को झटक देने की तौफ़ीक मिले

इश्क का सर्र-ए-निहां जान-तपां है जिस से
आज इकरार करें और तपिश मिट जाये
हर्फ़-ए-हक दिल में खटकता है जो कांटे की तरह
आज इज़हार करें ओर खलिश मिट जाये ।

बहार आई-फैज़

बहार आई तो जैसे एक बार
लौट आए हैं फिर अदम से
वो ख्ह्वाब सारे, शबाब सारे
जो तेरे होंठों पे मर मिटे थे
जो मिट के हर बार फिर जिए थे
निखर गये हैं गुलाब सारे
जो तेरी यादों से मुश्कबू हैं
जो तेरे उश्शाक का लहू हैं

उबल पड़े हैं अज़ाब सारे
मलाल-ए-अहवाल-ए-दोस्तां भी
खुमार-ए-आगोश-ए-महवशां भी
गुबार-ए-खातिर के बाब सारे
तेरे हमारेसवाल सारे, जवाब सारे
बहार आई तो खुल गये हैं
नये सिरे से हिसाब सारे।