पुष्प की अभिलाषा- माखन लाल चतुर्वेदी
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं मैं प्रेमी माला में
बिंधप्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर,
हे हरि डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सर पर चढूँ,
भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना बन-माली,
उस पथ पर देना तुम फेंक
मात्रभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जायें वीर
पथ जायें वीर अनेक!
गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं मैं प्रेमी माला में
बिंधप्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर,
हे हरि डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सर पर चढूँ,
भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना बन-माली,
उस पथ पर देना तुम फेंक
मात्रभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जायें वीर
पथ जायें वीर अनेक!
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